बीते कुछ समय में सूरज लोगों की चमड़ी जला रहा था। कुछ लोगों की मौतें भी हुईं। कूलर-एसी धड़ाधड़ बिके लेकिन उनसे भी काम नहीं हुआ। उनको बस आस थी- मानसून से। बारिश का ये मौसम किसे अच्छा नहीं लगता। किसानों को खेती की बुआई के लिए पानी मिल जाता है। धान की खेती के लिए बारिश वरदान साबित होती है। हालांकि यही बारिश जब विकराल रूप ले लेती है तो बाढ़ जैसे हालात हो जाते हैं और जलभराव होता है जिससे नुकसान ही होता है। ऐसी स्थिति में किसान अपनी फसलों के लिए जो सबसे अच्छा कर सकते हैं वह है कुछ तरीके जिसके तहत वो फसलों को मानसून से बचा सकते हैं।
बतातें चलें कि खरीफ़ फसलों के लिए बारिश अच्छी मानी जाती है। लेकिन हर चीज़ की अति बुरी होती है। इससे न सिर्फ जलभराव होता है बल्कि मिट्टी में पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है जिससे फसलें सड़ सकती हैं। अधिक बारिश होने से फसल पर फफूंद और विषाणु जैसे रोग लग सकते हैं। आप निश्चिंत होकर ये लेख पढ़िए, वादा है आप निराश नहीं जाएंगे।
कृषि विज्ञान केंद्र दामला के वरिष्ठ संयोजक डॉ एनके गोयल बताते हैं कि नुकसान से बचाव के लिए पानी की निकासी का प्रबंध करें। 750 ग्राम जिंक, पांच किलो यूरिया को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसमें दो पैकेट एनपीके 19:19 :19 के अवश्य मिला लें। इसके अलावा प्रति एकड़ चार-पांच बैग जिप्सम के ज़रूर डालें। 10 दिन के बाद दोबारा छिड़काव करें। वह आगे बताते हैं कि किसान पॉली हाउस में सब्जियों व फूलों की फसल तैयार करें। उत्पादन भी अव्वल रहेगा और फसल भी स्वस्थ होगी। बारिश व हवा फसल को प्रभावित नहीं करेगी।
बारिश और धान की फसल एक दूसरे की ज़रूरत है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, अरूणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और उत्तराखंड में धान ख़ूब बोया जाता है। किसान अगर यहां पहले बुआई कर लेतें हैं तो उनकी फसलें पानी में डूबी हुई होती हैं। ऐसे में किसानों को ज़्यादा पानी निकाल देना चाहिए। खेतों में नील हरित शैवाल का एक पैकेट प्रति एकड़ की दर से डाल दें। जो किसान थोड़ा रुककर खेतों में धान की रोपाई करते हैं और मानसून की शुरुआत में धान की नर्सरी लगाए 20-25 दिन हो गए हैं, तो इस दौरान किसान खेतों में पर्याप्त पानी रखते हुए धान की रोपाई कर सकते हैं। बस ध्यान रखें कि नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक सल्फेट सही मात्रा में डालें।
बारिश के बाद या उसके दौरान अपने सभी पौधों पर बारीकी से नज़र डालें और जो पौधे आपको कमज़ोर या भूरे दिखें उन्हें तुरंत काट दें। इस तरह आप नुकसान को फैलने से बचा सकते हैं।
रेन कवर मूल रूप से आपकी फसलों को ढकने के लिए बनाए गए कपड़े हैं ताकि बारिश का पानी सीधे उनतक न पहुंचे। अपनी फसलों को अतिरिक्त पानी से बचाने का सीधा उपाय उन्हें ढकना है। इसके अलावा हवाओं के साथ तेज बारिश कोमल पौधों को और अधिक नुकसान पहुंचा सकती है और उन्हें तोड़ सकती है। इससे बचने के लिए सलाह दी जाती है कि अपने पौधे के बिल्कुल करीब एक लकड़ी का खंभा लगाएं और उन्हें एक धागे से बांध दें। इस तरह जब हवाएं चलती हैं तो पौधे को खूंटी का सहारा मिल जाता है।
वहीं मानसून में भी समय समय पर फसलों पर जैविक कीटनाशक का छिड़काव ज़रूर करें। फसलों में सफ़ेद मक्खी, थ्रिप्स का प्रकोप सबसे ज़्यादा देखने को मिलता है। इससे बचाव के लिए किसानों को नीम तेल, केस्टर तेल और ब्यूवेरिया बासियाना को पानी में अच्छे से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। कई बार किसान भाई कीटनाशक दवाइयां जैसे इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल, थायोमिथोक्सम 25 प्रतिशत डब्लयूजी का प्रयोग कर सकते हैं। सब्ज़ियों की फसल में रोग और सड़न से बचाव के लिए किसान एक ग्राम कारबैंडिजम प्रति लीटर पानी या डाइथेनएम-45/2 ग्राम/लीटर पानी का छिड़काव कर सकते हैं। अगर कीटनाशक डालने के बाद भी आपकी फसल ख़राब हो रही है तो कृषि विशेषज्ञों की सलाह ज़रूर लें। वैसे भी मानसून के समय में कृषि विशेषज्ञ समय समय पर एडवाइजरी जारी करते हैं। आप उस पर भी नज़र बनाकर ज़रूर रखें।
हाल ही में मौसम विभाग ने कहा है कि कोंकण जैसे क्षेत्रों में चावल और रागी की रोपाई को फिलहाल टाल देना चाहिए। इसी तरह, मध्य महाराष्ट्र के घाट क्षेत्रों में चावल की रोपाई और सोयाबीन, मक्का, मूंगफली सहित खरीफ़ फसलों की बुआई में देरी की सलाह दी गई है। ये कदम फसल विकास के शुरुआती चरणों को अत्यधिक गीली परिस्थितियों से बचने में मदद करेंगे।
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प्रकृति की लीला देखिए कि पहले गर्मी से किसानों की फसलें जल जाती हैं। बाद में बारिश राहत बनकर आती है लेकिन वो कब आफ़त बन जाए, इसका कोई भरोसा नहीं। ज़रूरी ये है कि सावधानी भरे कदम पहले ही उठा लें। आशा करते हैं कि इस लेख में वो सारी जानकारी होगी जिसकी आपको तलाश थी।
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